एनसीपी के दिग्गज नेता शरद पवार के इस्तीफे को लेकर उद्धव गुट के मुखपत्र ‘सामना’ में एक संपादकीय छपा है जिसमें कई बड़े दावे किए गए हैं. मुखपत्र में दावा किया गया है कि शरद पवार ने एनसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से आनन-फानन में इस्तीफा दिया. सामना में किए गए इस दावे से अब कई तरह के सवाल उठने लगे हैं.
संपादकीय में और क्या लिखा गया?
संपादकीय में कहा गया है कि, शरद पवार ने अपनी एनसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से आनन-फानन में इस्तीफा दे दिया. पवार के करीबियों का कहना है कि असल में साहब तो 1 मई को यानी महाराष्ट्र दिवस को ही रिटायर होने की घोषणा करने वाले थे, लेकिन मुंबई में महाविकास आघाड़ी की वज्रमूठ सभा होने के कारण उन्होंने 2 मई को घोषणा की. मुखपत्र में कहा गया कि हम इस राय से सहमत नहीं हैं. पवार ने अपना भाषण लिखकर लाया था. मतलब उनका भावनात्मक आह्वान और इस्तीफे का मसौदा उन्होंने ध्यानपूर्वक तैयार करके लाया था और उसके तहत उन्होंने सब कुछ किया.
सामना में लिखा कि जयंत पाटील ने सही कहा. पाटील के आंसू छलक पड़े और उन्होंने कहा, आप ही पार्टी हैं. हम आपको देखकर ही राजनीति में आए और आपके नाम पर ही वोट मांगते हैं. आप ही नहीं रहेंगे तो हम पार्टी में क्यों रहें? हम भी इस्तीफा देते हैं. जयंत पाटील ने पार्टी कार्यकर्ताओं की भावना व्यक्त की और वह सच है. पवार द्वारा रिटायर होने की घोषणा करते ही कई प्रमुख नेताओं के आंसू छलक पड़े, रोने-धोने लगे. लेकिन इनमें से कइयों के एक पैर बीजेपी में हैं और पार्टी को इस तरह से टूटते देखने की बजाय सम्मान से रिटायर्मेंट ले ली जाए, ऐसा सेकुलर विचार शरद पवार के मन में आया होगा तो उसमें गलत नहीं है.
संपादकीय में दावा किया गया कि एनसीपी का एक गुट बीजेपी की दहलीज पर पहुंच गया है और राज्य की राजनीति में कभी भी कोई भूकंप आ सकता है. शरद पवार ने अपने तरीके से राजनीति की और कइयों की राजनीति बिगाड़ दी. यह सही है कि इंसान को ज्यादा मोह नहीं होना चाहिए और कभी तो रुकना चाहिए, लेकिन राजनीति से किसका मोहभंग हुआ है? धर्मराज और श्रीकृष्ण का भी नहीं हुआ. प्रधानमंत्री तो खुद को फकीर मानते हैं. लेकिन उन्हें भी राजनीतिक मोह-माया ने जकड़ रखा है.
मुखपत्र में आगे लिखा गया कि उसमें शरद पवार तो पूर्णकालिक राजनेता हैं. ऐसा राजनीतिक व्यक्ति इस्तीफा देकर हलचल मचाए, इसके पीछे की सियासत क्या है? इसका संशोधन कुछ लोग करने लगें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. ‘ईडी’ जैसी जांच एजेंसी के कारण पार्टी में फैली बेचैनी और उससे सहयोगियों द्वारा चुना गया बीजेपी का रास्ता, क्या इसके पीछे इस्तीफा देने की वजह हो सकती है? यह पहला सवाल. दूसरा, यानी अजित पवार और उनका गुट अलग भूमिका अपनाने की तैयारी में हैं, क्या उसे रोकने के लिए पवार ने यह कदम उठाया है? यह दूसरा सवाल. शिवसेना टूटी. चालीस विधायक छोड़कर चले गए लेकिन संगठन और पार्टी अपनी जगह पर है. कल राष्ट्रवादी के कुछ विधायक वगैरह चले गए फिर भी जिलास्तरीय संगठन हमारे पीछे रहे, इस दृष्टिकोण से जनमानस परखने का यह एक झटका देनेवाला प्रयोग हो सकता है.
मुखपत्र में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के बारे में लिखा गया कि पवार साहेब ने इस्तीफा दिया. वे वापस नहीं लेंगे. उनकी सहमति से दूसरा अध्यक्ष चुनेंगे, ऐसा अजित पवार कहते हैं. यह दूसरा अध्यक्ष कौन? पवार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और पवार की पार्टी महाराष्ट्र केंद्रित है. इसलिए राष्ट्रीय अध्यक्ष पद संभालने योग्य नेता चुनते समय सावधानी बरतनी पड़ेगी. अजित पवार की राजनीति का अंतिम उद्देश्य महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनना है. सुप्रिया सुले दिल्ली में रहती हैं. उनकी वहां की स्थिति अच्छी है. संसद में वह बेहतरीन काम करती हैं.